Friday 11 January 2013

AAHWAN




आह्वान
शोक कैसा आज छाया तिमिर की गहराई में ;
आज स्वयं को खोजता क्यूँ तरुण निज परछाई में |
कल्पना में खो गया सत्य का स्वरुप अब क्यूँ ;
रोशिनी दिखती नहीं कोयला हुआ सब रूप अब क्यूँ ?
रुधिर क्यूँ बन गया है आज पानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??

मै नहीं मय बोलता है चहुओर अब तो ;
विपत्ति ने भी दिए पट खोल अब तो |
रश्मियों को दे दिया है क्यूँ निकाला ;
कृपाण तज क्यों हाथ में है मय का प्याला ?
बन गयी बस मोह की बेबस कहानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??

शूल ने देखा चमन को चाहतों से ;
फूल ये महका अमन की हसरतो से |
बिन शूल के क्या फूल संभव थे बताओ ;
तुम भी बन शूल क्यूँ न मुस्कुराओ ?
शूल के कारण नहीं क्या फूलों की निशानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??

क्षितिज छूने का अरमान धरती ने संजोया ;
बस इसलिए ही पर्वतों का बीज बोया |
और वो शिखर पर शीश निज ऊँचा किये हैं;
जिसपर गगन ने हाथ अपने रख दिए हैं |
पर नहीं क्यूँ आरोह सम्मत तेरी क्यूँ जिंदगानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??

        -------- कविराज तरुण  

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