Tuesday 29 August 2017

मृगनयनी

विषय - मृगनयनी

ओ मृगनयनी तेरे नेत्र सुहावन ।
अम्बर से नीले कजरी पावन ।
है पलकों के भीतर अल्हड़ रैन ।
निजभाषा में करते नित सैन ।

बंद रहकर भी तेरे बोलते हुए नैन ।
स्वप्न द्वार पलकों से खोलते हुए नैन ।
और कुटिल सी मुस्कान
जिसपर अर्क गुलाबी सा निशान
चुरा लेंगे अनगिनत दीवानों का चैन ।
बंद रहकर भी तेरे बोलते हुए नैन ।

इसकी आभा की उपमा कुछ भी नही
बंद हो तो नज़ाकत, जो खुले तो शरारत
एक टकी से जो देखे , तो फिर हो कयामत
घूर दे तो नसीहत , झपकी ले तो मोहब्बत
चौक कर जब ये देखे , तो फिर विस्मित अकीदत
कभी ये इबादत कभी ये शराफत
कभी ये हकीकत कभी ये मुहब्बत
इस खुदा की सबसे अनोखी ये देन ।
बंद रहकर भी बोलते हुए नैन ।

 
 कविराज तरुण 'सक्षम'

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