Saturday 26 August 2017

ग़ज़ल 26- नही मिलती

कभी साहिल नही मिलता , कभी मंजिल नही मिलती ।
मिरे ज़ख्मो को' जाने क्यों , दवा काबिल नही मिलती ।।

बड़ी तकरार होती है , ज़रा सी बात पर अब तो ।
नही रहबर मिले कोई कहीं महफ़िल नही मिलती ।।

जमीं है चाँद तारे भी , गवाही है मुहब्बत की ।
मगर वो ही ख़फ़ा हैं तो , ख़ुशी इस दिल नही मिलती ।।

भरम है आबदानी का , जहाँ आँसू ही' मोती हैं ।
तिरी चाहत न होती तो , पलक बोझिल नही मिलती ।।

'तरुण' बेबस तरानो का , नही हक़दार सौदाई ।
अदावत की मिलावट से , फ़िज़ा आदिल नही मिलती ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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