Friday 8 September 2017

ग़ज़ल 32 - मुहब्बत है

ग़ज़ल 32 - मुहब्बत है

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कीमत न लगा दिल की , अरमान-ए-मुहब्बत है ।
बाहों में' अजब राहत , अफसान-ए-मुहब्बत है ।।

मंदिर के' लिये फेरे , मस्जिद का' नमाजी भी ।
इतना ही' खुदा जाना , रमजान-ए-मुहब्बत है ।।

तफ़्तीश-ए-जवानी में , जिस्मो की' नुमाइश है ।
मन साफ़ नज़र वाज़िब , उनवान-ए-मुहब्बत है ।।

कुदरत की' फरस्ती मे , रौनक यही' है साहिब ।
खुशियों की' खियाबां मे , महमान-ए-मुहब्बत है ।।

ज़ाहिर है' हक़ीक़त है , बेज़ान मुसीबत है ।
जिसका न तरुण कोई , तूफ़ान-ए-मुहब्बत है ।।

उनवान - प्रस्तावना
खियाबां - फूलों की बगिया

कविराज तरुण 'सक्षम'

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