Monday 2 October 2017

ग़ज़ल 48 प्रेमी प्रेमिका

संशोधित

प्रतियोगिता हेतु ग़ज़ल
बहर- १२२ १२२ १२२ १२२

प्रेमी-
कभी है मुहब्बत कभी है बगावत ।
बता कैसे' दिल की मिलेगी युं राहत ।।
प्रेमिका-
कभी तुम फरेबी कभी हो हक़ीक़त ।
मिलेगी नही दर्द-ए-दिल को इनायत ।।

प्रेमी-
कभी पास आते कभी दूर जाते ।
अधूरी कहानी अधूरी सी' चाहत ।।
प्रेमिका-
नही तुम रिझाते नही तुम मनाते ।
हैं' बातें पुरानी तुम्हारी नज़ाक़त ।।

प्रेमी-
दिया लेके' खोजो न हमसा मिलेगा ।
शरीफो ने' सीखी है' हमसे शराफ़त ।।
प्रेमिका-
अजी झूठ बोलो न सबको पता है ।
तिरे यार ही मुझको' देते नसीहत ।।

प्रेमी-
नही दोस्त समझो वो' दिल के बुरे हैं ।
रखी जहन मे है अजब ही अदावत ।।
प्रेमिका-
चलो ठीक है मानती तेरी' बातें ।
मगर ध्यान रखना मिले ना शिकायत ।।

प्रेमी-
भरोसा करो मै न तोडूंगा' इसको ।
मिरे दिल की' रानी मै' तेरी रियासत ।।
प्रेमिका-
न अब हो हिमाकत न कोई शरारत ।
बड़े प्यार से हम करेंगे मुहब्बत ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

No comments:

Post a Comment