Monday 2 October 2017

ग़ज़ल 50 गम में काफ़िया

122 122 122 122

किवाड़ों की' उलझन को' हमने जिया है ।।
दरारों को' भीतर से' हमने सिया है ।

फ़कीरी उदासी परेशानियां थी ।
रदीफ़े बहर ग़म मे' ये काफ़िया है ।।

मिला बंदिगी में खुदा का सहारा ।
तभी नाम जीवन ये' उसके किया है ।।

रहम की गुज़ारिश करे भी तो' कैसे ।
ज़हर अपने हाथों से' हमने पिया है ।।

रवाँ हुस्न तेरा फलक का सितारा ।
'तरुण' जल न पाया जो' बुझता दिया है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

No comments:

Post a Comment