Friday 27 October 2017

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तुम मुझे कभी सुलाती नहीं हो
मैं पास आता हूँ तुम पास आती नही हो
ख़फ़ा बहुत हूँ तुमसे ऐ चाँदनी
चंदा को छोड़ कहीं भी जाती नही हो
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चलो एक ऐसी रोली गाते हैं
आज इस रात को सुलाते हैं
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वो ज़रा बन जाये दिलवाली
तो अपनी भी मन जाये दिवाली
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जलाओ दीप कुछ इसतरह यारों
अँधेरा जग में कहीं रह न जाए
शुभ दीपावली
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अगर ये है मुहब्बत तो मुहब्बत मान लेते हैं ।
चलो कुछ तुम कदम कुछ हम चलें ये ठान लेते हैं ।।
अदायें लाज़िमी हैं हुस्न की चौखट तले आयें ।
हया का तिल सजाकर वो हमेशा जान लेते हैं ।।
मिलावट हो नही पाती करूँ कोशिश भला मै क्यों ।
बिना कत्थे सुपारी के वो' मीठा पान लेते हैं ।।
०-कविराज तरुण-०
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दुश्वारियां भी हैं ,बेकारियां भी हैं
मुहब्बत कर नही सकते, लाचारियां भी हैं
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नींद को ख़बर नही है
मेरी आँख है , तेरा घर नही है
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कुछ असर तो तुझे भी होगा
नजरे तुमने भी मिलाई थी

क.त.००१

कान दीवारों के सजग थे
खबर दराजों को भी थी जब तू आई थी

क.त. ००२
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रवाँ हुस्न तेरा फलक का सितारा ।
तरुण जल न पाया जो बुझता दिया है ।।
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जब ख़ामोश हूँ मै
तो होश मे हूँ मै
कुछ बोलूँगा तो राज़ खुल जायेंगे ।
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कभी तकदीर हँसती है कभी तस्वीर हँसती है ।
मै' इनपर भी हँसूँ थोड़ा अगर तू साथ हँसती है ।।
कविराज तरुण
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फर्क पड़ता नही कितने दुश्मन हैं लिफ़ाफ़े मे
कोशिश बस इतनी है दोस्त होते रहे इज़ाफ़े में
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फिर वफ़ा का नूर आया है मुझे
चौक पर उसने बुलाया है मुझे

कविराज तरुण
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शाम भी रात भी नाम भी बात भी
कुछ न मेरा रहा सब तेरा हो गया

कविराज तरुण
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की एक सिफारिश और नींद आ गई
ख़्वाब तुमने अबतक मेरा साथ नही छोड़ा

कविराज तरुण
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मत आना छत पर जुल्फ़े संवारने
भीड़ ज्यादा है
बड़ी लंबी कतार है
कविराज तरुण
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आज के इस दौर में अफ़सोस यही होता है
कोई भी घटना हो जाये
जोश बस चार दिन का होता है
#ArrestRyanPinto
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ऐ सूरज बादलों के पार हो जाओ
बारिश की सलाखों में गिरफ्तार हो जाओ
सुप्रभात
कविराज तरुण
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दो चार आँसूं में लिपटकर रो जाऊँगा
याद करूँगा तुझे और सिमटकर सो जाऊँगा
💐शुभरात्रि 💐
कविराज तरुण 9451348935
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मर गया प्रद्युम्न वो तो पढ़ने गया था
माँ के सपनो में दो कदम बढ़ने गया था
मासूमियत पर किसने चाकू चलाये
स्कूल में कैसे अब कोई जाये
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कभी कोई , कभी कोई
कभी कोई खुदा से मांग लेता है
दुआ हो तुम कोई इंसान नही हो
कविराज तरुण
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तुम गुल रहो मै गुलफाम हो जाऊँ
तेरे चौखट पर उतरी इक शाम हो जाऊँ
नही कुछ मांगूँ मै दुआ मे
रहो तुम ख़ास और मै आम हो जाऊँ
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वो सरेआम लगाते रहे इल्ज़ाम
मैंने वफ़ा में मगर लफ्ज़ नही खोले

कविराज तरुण
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न दिल न दुआ न जमीन है अबतक
जिंदगी फिरभी बेहतरीन है अबतक
सुप्रभात
कविराज तरुण
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शायद यही दस्तूर था
उनका जाना एक सच
उनका आना मेरे मन का फितूर था
-कविराज तरुण
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ख़्वाहिश है ,बारिश है ,मै हूँ और तुम
बंदिश है घरवालों की हुमतुम गुमसुम

कविराज तरुण
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