Wednesday 31 January 2018

ग़ज़ल 81 आजकल

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आजकल भूख भी नही लगती ।
और कुछ चीज भी नही फबती ।।

रहती पलकें खुली खुली हरदम ।
रातभर नींद भी नही जगती ।।

रोग ऐसा लगा जवानी मे ।
जान जाती मगर नही भगती ।।

चाँद आगोश में तसल्ली है ।
चाँदनी बारबां नही सजती ।।

जिस दुपट्टे को थाम के रोया ।
धूप में भी नमी नही हटती ।।

हाल बेहाल दिल तकल्लुफ मे ।
ये कमी भर के भी नही भरती ।।

क्यों *तरुण* खामखाँ पुकारो तुम ।
वो हसीं अब यहाँ नही रहती ।।

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

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